Hello friend!
I am student of English department, MKBU. Here I am share my view point on thise Hindi poem सदियों पुराना this task given by our prof. Dilip Barad Sir.
Here this poem:-
Title:- सदियों पुराना
तुम्हारे भीतर है
सदियों पुराना
एक खूसट बूढ़ा
जो लाठियां ठकठकाते
अभी भी अपनी मुंछों को
तेल पिलाते रहता है
आखिर तुम कैसे
उसकी झुर्रियों के जाल से
बाहर आ पाओगी
तुम्हारे भीतर है
हमारी छटपटाती
भूखी इच्छाएं
खूनी वासनाएं
इन सबके बीच
आखिर कब तक
रह पाओगी
तुम वह मीठा झरना
जिसमें तैरती हैं
मछलियां
किनारे पर जिसके
पड़ी होती हैं सीपियां
तुम्हारे भीतर है
सदियों पुराना
एक खूसट बूढ़ा
जो लाठियां ठकठकाते
अभी भी अपनी मुंछों को
तेल पिलाते रहता है
आखिर तुम कैसे
उसकी झुर्रियों के जाल से
बाहर आ पाओगी
तुम्हें बंद करने होंगे
वे सारे दरवाजे
जो खोल रखे हैं
उस खूसट बूढ़े ने
आखिर कोई कैसे
सदियों तक अपनी जमीन
बंधक रहने दे सकता है
पहली बार पढ़ने से कुछ समझ नहीं पाई क्या कहना चाहती है इस काव्य। बाद में दो तीन बार पढ़ने से पता चलता है , बूढ़ा खुसत कोन है? यही पर कविने पुरुषवादी समाजकी कल्पना की है। बाहर आ पाओगी जैसे शब्द से पता चलता है कि यही पर स्त्री या नारी के बारेमे बात की है।
पहले फकरे में स्त्रीसशक्तिकरण के बारेमे बात की है। एक खूसट बूढ़ा जो लाठियां ठकठकाते अभी भी अपनी मुंछों को तेल पिलाते रहता है। यह बात से पता चलता है की स्त्री की स्थिति आजभी दयनीय है। पुरुषप्रधान समाजमे आजभी उसको स्वयं निर्णय लेनेके लिए फ़्रीडम नहीं दी गई। स्त्रीका जीवन अंधेरोमे बीत रहा है। उसी लिए आज स्त्री को जागृत करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। दंगल जैसी फिल्मों में स्त्री का रोल दिखाया गया है फिरभी यही स्त्रीओ के सामने आज भी कही पुरुषवादी सोच पीछा नहीं छोड़ पाती।
तुम्हारे भीतर है
हमारी छटपटाती
भूखी इच्छाएं
खूनी वासनाएं
ऐसे शब्दों से पता चलता है के पुरुष प्रधान समाज में स्त्री केसे जि पाएगी? रास्ते के हर मोड़ पर उसे कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। वो इतनी भी सक्षम नहीं होगी के वो अकेले सामना कर सके। ऐसी सोच रखने वाले लोग उसे कमजोर मानते है। उसे एक नाजुक मछली समझ रहै है। स्त्रीको सशक्त होना पड़ेगा। ऐसी सोच को दिखाया गया है।
स्त्री को आज ३३% हर क्षेत्र में अनामत दि जाती है? उसे हम कह सकते है की स्त्री को हम शसक्त कर सकेगे? यह प्रश्को ध्यान से दिखे तो पता चलता है की यह उसका अधिकार है या दया?
एक उदाहरण के रूप से दिखेतो मुझे एक बात याद आती है, मैंने कही पर पढ़ा था कि एक पुरुष स्त्री सशक्तिकरण सब्जेक्ट पर भाषण देकर घर पर आता है और पूछता है उसकी पत्नी क्यों घर पर नहीं हैं। ऐसी वास्तविकता देखते पता चलता है की आज के समय में हम मॉडर्न तो हो गए है; किन्तु विचारो से नही। क्यो स्त्रियों के मामले में आज भी कोई फ़्रीडम नहीं?
आखिर कोई कैसे
सदियों तक अपनी जमीन
बंधक रहने दे सकता है
अंत पंक्तियों पढ़ने से पता चलता है की, स्त्री को सशक्त होना पड़ेगा। कब तक वो अपनी आवाज को बंध कर पाएगी? सारे बंधनोको तोड़ कर अपना रास्ता उसे खुद बनाना पड़ेगा।
मेरी लिखी हुई काव्य पंक्तिमें से एक पंक्ति;
"आग आने से नही डरती हूं;
अपनों से डर जाती हूं।"
स्त्री खुद सशक्त बन सकती है; जो वो अपनी आवाज खुद सुने और प्रयास करे।
Here wind up my interpretation on this poem. This poem interprete in my point of view and understands level to this poem.
धन्यवाद।।
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